Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. ७ : सू. १२८-१३५
व्यतिक्रांत होने पर भी काय होता है ।
भंते! पहले काय का भेदन होता है ? चीयमान अवस्था में काय का भेदन होता है ? काय का समय व्यतिक्रांत होने पर काय का भेदन होता है ?
गौतम! पहले भी काय का भेदन होता है, चीयमान अवस्था में भी काय का भेदन होता है, काय का समय व्यतिक्रांत होने पर भी काय का भेदन होता है ।
१२९. भंते! काय के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! काय के सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- औदारिक, औदारिक- मिश्र, वैक्रिय, वैक्रिय- मिश्र, आहारक, आहारक - मिश्र, कार्मण ।
मरण-पद
१३०. भंते! मरण के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! मरण के पांच प्रकार प्रज्ञप्त है, जैसे - आवीचि - मरण, अवधि-मरण, आत्यंतिक-मरण, बाल-मरण, पंडित मरण ।
१३१. भंते! आवीचि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे द्रव्य - आवीचि-मरण, क्षेत्र - आवीचि-मरण, काल- आवीचि -मरण, भव-आवीचि मरण, भाव- आवीचि - मरण |
१३२. भंते! द्रव्य - आवीचि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- नैरयिक- द्रव्य - आवीचि मरण, तिर्यग्योनिक-द्रव्य- आवीचि-मरण, मनुष्य- द्रव्य - आवीचि-मरण, देव द्रव्य - आवीचि - मरण ।
१३३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - नैरयिक द्रव्य - आवीचि मरण नैरयिक- द्रव्य - आवीचि मरण है ?
गौतम ! क्योंकि नैरयिक नैरयिक- द्रव्य में वर्तमान जो द्रव्य नैरयिक- आयुष्य के रूप में गृहीत, बद्ध, स्पृष्ट, कृत, प्रस्थापित निविष्ट, अभिनिविष्ट और अभिसमन्वागत होते हैं, वे द्रव्य-तरंग की भांति प्रतिक्षण निरंतर विच्युत होते रहते हैं । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है— गौतम ! नैरयिक- द्रव्य - आवीचि-मरण, इस प्रकार यावत् देव-द्रव्य - आवीचि - मरण है। १३४. भंते! क्षेत्र - आवीचि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे - नैरयिक- क्षेत्र - आवीचि - मरण यावत् देव-क्षेत्र- आवीचि मरण ।
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१३५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक क्षेत्र - आवीचि मरण नैरयिक क्षेत्र- आवीचि - मरण है ?
गौतम ! जो नैरयिक नैरयिक क्षेत्र में वर्तमान जो द्रव्य नैरयिक- आयुष्य के रूप में गृहीत होते हैं, इस प्रकार जैसे द्रव्य - आवीचि मरण की वक्तव्यता वैसे ही क्षेत्र आवीचि - मरण भी वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् भव-आवीचि - मरण ।
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