Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १३ : उ. ४ : सू. ८२-८५
भगवती सूत्र ८२. भंते ! जहां धर्मास्तिकाय अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक भी नहीं। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? असंख्येय। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? असंख्येय। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ?
अनंत, इस प्रकार यावत् अद्धा-समय। ८३. भंते ! जहां अधर्मास्तिकाय अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं?
असंख्येय। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक भी नहीं। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्य है। इस प्रकार सब स्व-स्थान की अपेक्षा 'एक भी नहीं' यह वक्तव्य है, पर-स्थान की अपेक्षा प्रथम तीन असंख्येय वक्तव्य हैं, उत्तरवर्ती तीन अनंत वक्तव्य हैं यावत् अद्धासमय। यावत् कितने अद्धासमय अवगाढ हैं ? एक भी नहीं। ८४. भंते ! जहां एक पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ है, वहां कितने पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ
असंख्येय। कितने अप्कायिक जीव अवगाढ हैं ? असंख्येय। कितने तैजसकायिक जीव अवगाढ हैं ? असंख्येय। कितने वायुकायिक जीव अवगाढ हैं ? असंख्येय। कितने वनस्पतिकायिक जीव अवगाढ हैं ?
अनंत। ८५. भंते ! जहां एक अप्कायिक जीव अवगाढ है, वहां कितने पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ
असंख्येय। कितने अप्कायिक जोव अवगाढ हैं?
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