Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
बत्तीस योजन से कुछ विशेषाधिक है।
वह एक प्राकार से चारों ओर से घिरा हुआ है। वह प्राकार ऊंचाई में डेढ - सौ योजन ऊर्ध्व है । इस प्रकार चमरचंचा राजधानी की वक्तव्यता, वहां सभा नहीं है यावत् चार प्रासादपंक्ति हैं ।
श. १३ : उ. ६ : सू. ९६-१०२
९७. भंते ! क्या असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंच आवास में निवास करते हैं ? यह अर्थ संगत नहीं है ।
९८. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - चमरचंच आवास चमरचंच आवास है ?
गौतम ! यथानाम इस मनुष्य लोक में औपकारिक लयन, औद्यानिक लयन, निर्यानिक लयन, प्रपात लयन, वहां बहुत पुरुष और स्त्रियां रहते हैं, सोते हैं, ठहरते हैं, बैठते हैं, करवट बदलते हैं, परिहास करते हैं, रमण करते हैं, मनोवांछित क्रियाएं करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, दूसरों को क्रीडा करवाते हैं, मोहित करते हैं । पूर्वकृत, पुरातन सुआचरित, सुपराक्रांत, शुभ और कल्याणकारी कर्मों के कल्याण- फल-वृत्ति - विशेष का प्रत्यनुभव करते हुए विहरण करते हैं, निवास वहां नहीं करते हैं, दूसरे स्थान पर करते हैं। गौतम ! इसी प्रकार असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंच आवास में केवल क्रीडा - रति के लिए आते हैं, निवास वहां नहीं करते हैं, दूसरे स्थान पर करते हैं । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - चमरचंच आवास चमरचंच आवास है ।
९९. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। यावत् आत्मा को भावित करते हुए विहरण करते हैं ।
१००. श्रमण भगवान् महावीर ने किसी दिन राजगृह नगर से, गुणशीलक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर वे वहां से बाहर जनपद विहार करने लगे ।
उद्रायण-कथा-पद
१०१. उस काल और उस समय में चंपा नामक नगरी थी - वर्णक । पूर्णभद्र चैत्य - वर्णक | श्रमण भगवान् महावीर किसी दिन क्रमानुसार विचरण, ग्रामानुग्राम में परिव्रजन और सुखपूर्वक विहार करते हुए जहां चंपा नगरी और पूर्णभद्र चैत्य था, वहां आए। वहां प्रवास - योग्य स्थान की अनुमति ली, अनुमति लेकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे थे।
१०२. उस काल और उस समय में सिंधु - सौवीर जनपद में वीतीभय नाम का नगर था - वर्णक । उस वीतीभय नगर के बाहर उत्तर पश्चिम दिशि भाग में मृगवन नामक उद्यान था - सर्व ऋतु में पुष्प और फल से समृद्ध - वर्णक । उस वीतीभय नगर में उद्रायण नाम का राजा था- वह महान् हिमालय, महान् मलय, मेरु और महेन्द्र की भांति - वर्णक । उस उद्रायण राजा के पद्मावती नाम की देवी थी - सुकुमाल हाथ-पैर वाली - वर्णक । उस उद्रायण राजा के प्रभावती नाम की देवी थी - वर्णक । यावत् विहरण करने लगे ।
उस उद्रायण राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज अभीची नाम का कुमार था - सुकुमाल हाथ-पैर वाला, अक्षीण और प्रतिपूर्ण पंचेन्द्रिय- शरीर वाला, लक्षण और
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