Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १३ : उ. ४ : सू. ७३-७६
भगवती सूत्र अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है? एक से भी नहीं। शेष की धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। इस प्रकार इस गमक के द्वारा सभी स्व-स्थान की अपेक्षा एक प्रदेश से भी स्पृष्ट नहीं हैं, पर-स्थान की अपेक्षा आदि तीन (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय) में असंख्येय वक्तव्य है। अंतिम तीन में अनंत वक्तव्य है यावत् अद्धा-समय यावत् कितने अद्धासमयों से स्पृष्ट है? एक से भी नहीं। धर्मास्तिकाय-आदि का अवगाढ-पद ७४. भंते ! जहां धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक भी नहीं। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एका आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? अनंत। पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? अनंत। अद्धा-समय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं? स्यात् अवगाढ हैं, स्यात् अवगाढ नहीं हैं। यदि हैं तो अनंत। ७५. भंते ! जहां अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं ? एक। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक भी नहीं। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। ७६. भंते ! जहां आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश
अवगाढ हैं ? स्यात् अवगाढ हैं, स्यात् अवगाढ नहीं हैं, यदि अवगाढ हैं तो एक अवगाढ है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेश भी। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? एक भी नहीं।
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