Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. ४ : सू. ६८-७३
अनंत स। पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? अनंत से। कितने अद्धा-समय से स्पृष्ट हैं ?
स्यात् स्पृष्ट है, स्यात् स्पृष्ट नहीं है। यदि स्पृष्ट हैं तो नियमतः अनंत से। ६९. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के असंख्येय प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? जघन्य-पद में उसी असंख्येय से दो-अधिक-द्वि-गुणित असंख्येय से, उत्कृष्ट-पद में उसी असंख्येय से दो-अधिक-पंच-गुणित असंख्येय से। शेष संख्येय की भांति वक्तव्यता यावत् नियमतः अनंत से। ७०. भंते! पुद्गलास्तिकाय के अनंत प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ?
इस प्रकार जैसे असंख्येय की वक्तव्यता वैसे ही अनंत की निरवशेष वक्तव्यता। ७१. भंते ! एक अद्धा-समय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है?
सात से। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है ? पूर्ववत्। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेशों की वक्तव्यता। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है?
अनंत से। इसी प्रकार यावत् अद्धा-समय से। ७२. भंते ! धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है? एक से भी नहीं। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? असंख्येय से। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? असंख्येय से। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? अनंत से। पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? अनंत से। कितने अद्धा-समय से स्पृष्ट है? स्यात् स्पृष्ट है, स्यात् स्पृष्ट नहीं है। यदि स्पृष्ट है तो नियमतः अनंत से। ७३. भंते ! अधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है?
असंख्येय से।
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