Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १३ : उ. १ : सू. ७-१५
भगवती सूत्र
गौतम! पच्चीस लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय विस्तृत हैं? इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा-पृथ्वी की वैसे ही शर्कराप्रभा-पृथ्वी की वक्तव्यता, इतना विशेष है-असंज्ञी के तीनों गमक वक्तव्य नहीं हैं, शेष पूर्ववत् । ८. वालुका प्रभा की पृच्छा।
गौतम! पंद्रह लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। शेष शर्कराप्रभा की भांति वक्तव्य है, लेश्या में नानात्व है। लेश्या प्रथम शतक (भ. १/२४४) की भांति वक्तव्य है। ९. पंकप्रभा की पृच्छा।
गौतम! दस लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार शर्कराप्रभा की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-अवधि-ज्ञानी और अवधि-दर्शनी उद्वर्तन नहीं करते। शेष पूर्ववत्। १०. धूमप्रभा की पृच्छा।
गौतम! तीन लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार पंक-प्रभा की भांति वक्तव्यता। ११. भंते! तमा-पृथ्वी के कितने लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पांच कम एक लाख (निन्यानवें हजार नौ सौ पिचानवें) नरकावास प्रज्ञप्त हैं।
शेष पंक-प्रभा की भांति वक्तव्यता। १२. भंते! अधःसप्तमी-पृथ्वी के कितने अनुत्तर, विशालतम महानरक प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पांच अनुत्तर विशालतम महानरक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-काल, महाकाल, रोरुक, महारोरुक और अप्रतिष्ठान। भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय-विस्तृत हैं?
गौतम! संख्येय विस्तृत और असंख्येय विस्तृत हैं। १३. भंते! अधःसप्तमी-पृथ्वी के पांच अनुत्तर विशालतम महानरकों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में एक समय में कितने नैरयिक उपपन्न होते हैं? इस प्रकार पंकप्रभा की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-मति-, श्रुत- और अवधि-ज्ञानी उपपन्न नहीं होते, उद्वर्तन नहीं करते किन्तु वहां मति-, श्रुत- तथा अवधि-ज्ञान की सत्ता है। इसी प्रकार असंख्येय-विस्तृत महानरकों की वक्तव्यता, इतना विशेष है-संख्येय के स्थान
पर असंख्येय वक्तव्य है। १४. भंते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में क्या
सम्यग्-दृष्टि नैरयिक उपपन्न होते हैं? मिथ्या-दृष्टि नैरयिक उपपन्न होते हैं? सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नैरयिक उपपन्न होते हैं? गौतम! सम्यग्-दृष्टि नैरयिक भी उपपन्न होते हैं, मिथ्या-दृष्टि नैरयिक भी उपपन्न होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नैरयिक उपपन्न नहीं होते। १५. भंते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में क्या
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