Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १३ : उ. १,२ : सू. २२-२९.
भगवती सूत्र वक्तव्य हैं यावत् इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कापोत-लेश्या में यावत् उपपन्न होते हैं। २३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक २४. भंते! देव के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! देव के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भवनवासी, वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक । २५. भंते ! भवनवासी-देव के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! दस प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे असुरकुमार-इसी प्रकार भेद द्वितीय शतक के देव उद्देशक (भ. २/११७) की भांति यावत् अपराजित, सर्वार्थसिद्धक। २६. भंते! असुरकुमारों के कितने लाख आवास प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! असुरकुमारों के आवास चौसठ लाख प्रज्ञप्त हैं। भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय विस्तृत हैं? गौतम! संख्येय-विस्तृत भी हैं, असंख्येय विस्तृत भी हैं। २७. भंते! असुरकुमार के चौसठ लाख आवासों में से संख्येय-विस्तृत असुरकुमारों के
आवासों में एक समय में कितने असुरकुमार उपपन्न होते हैं? यावत् कितने तेजोलेश्या वाले उपपन्न होते हैं? कितने कृष्णपाक्षिक उपपन्न होते हैं? इस प्रकार रत्नप्रभा की भांति वही पृच्छा
और वही व्याकरण, इतना विशेष है-दो वेद वाले उपपन्न होते हैं, नपुंसक-वेदक उपपन्न नहीं होते। शेष पूर्ववत्। उद्वर्तना भी रत्नप्रभा की भांति वक्तव्य है, इतना विशेष है-असंज्ञी के रूप में उद्वर्तन करते हैं। अवधि-ज्ञानी, अवधि-दर्शनी उद्वर्तन नहीं करते। शेष पूर्ववत् किन्तु वहां अवधि-ज्ञान
और अवधि-दर्शन की सत्ता है, इतना विशेष है-संख्येय स्त्री-वेदक प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार पुरुष-वेदक भी। नपुंसक-वेदक नहीं हैं। क्रोध-कषाय वाले स्यात् हैं, स्यात् नहीं हैं। यदि हैं तो जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार मान-कषाय वाले, माया-कषाय वाले। लोभ-कषाय वाले संख्येय प्रज्ञप्त हैं, शेष पूर्ववत्। उपपत्ति, उद्वर्तन, सत्ता-इन तीन गमकों में चार लेश्याएं वक्तव्य हैं। इसी प्रकार असंख्येय-विस्तृत असुरकुमार के आवासों की वक्तव्यता, इतना विशेष है-तीन गमकों में असंख्येय वक्तव्य हैं यावत् असंख्येय अचरम भव वाले प्रज्ञप्त हैं। २८. भंते ! नागकुमारों के आवास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं? इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता, इतना विशेष है-जहां जितने भवन (द्रष्टव्य भगवती १/२१३) प्रज्ञप्त हैं। २९. भंते! वाणमंतरों के आवास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं? गौतम! वाणमंतरों के असंख्येय लाख आवास प्रज्ञप्त हैं।
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