Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. ३,४ : सू. ४०-४३
तीसरा उद्देशक ४०. भंते! नैरयिक अनन्तर-आहारक, उसके पश्चात् शरीर की निष्पत्ति, इसी प्रकार
परिचारणा-पद (पण्णवणा पद ३४) निरवशेष वक्तव्य है। ४१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
चौथा उद्देशक
नरक और नैरयिकों में अल्प-महत्-पद ४२. भंते! पृथ्वियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? ___ गौतम! पृथ्वियां सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमी। ४३. भंते! अधःसप्तमी-पृथ्वी के पांच अनुत्तर विशालतम महानरक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-काल,
महाकाल. रोरुक. महारोरुक. अप्रतिष्ठान। वे नरक षष्ठी तमा-पथ्वी के नरकों से महत्तर-अधिक लम्बाई वाले हैं, महा-विस्तीर्णतर-अधिक चौड़ाई वाले हैं, महा-अवकाशतर हैं, महाप्रतिरिक्ततर-अधिक एकान्त वाले हैं, तमा की भांति महाप्रवेशनतर नहीं हैं, आकीर्णतर नहीं हैं, आकुलतर नहीं हैं, अनवमानतर नहीं हैं-अतिशयरूप से भरे हुए नहीं हैं। अधःसप्तमी के नरकावासों के नैरयिक छठी तमा-पृथ्वी के नैरयिकों से महाकर्मतर हैं, महाक्रियातर हैं, महाआश्रवतर हैं, महावेदनतर हैं, वैसे अल्पकर्मतर नहीं हैं, अल्पक्रियातर नहीं हैं, अल्पआश्रवतर नहीं हैं, अल्पवेदनतर नहीं हैं, अल्पर्द्धिकतर हैं, अल्पद्युतिकतर हैं, वैसे महर्द्धिकतर नहीं हैं, महाद्युतिकतर नहीं हैं। षष्ठी तमा-पृथ्वी के पांच कम एक लाख नौ सौ पिचानवें नरकावास प्रज्ञप्त हैं। वे नरक अधःसप्तमी पृथ्वी के नरक जैसे महत्तर नहीं हैं, महाविस्तीर्णतर नहीं हैं, महाअवकाशतर नहीं हैं, महाप्रतिरिक्ततर नहीं हैं, महाप्रवेशनतर हैं, आकीर्णतर हैं, आकुलतर हैं, अनवमानतर हैं। उन नरकों के नैरयिक अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिकों से अल्पकर्मतर हैं, अल्पक्रियातर हैं, अल्पआश्रवतर हैं, अल्पवेदनतर हैं, वैसे महाकर्मतर नहीं हैं, महाक्रियातर नहीं हैं, महाआश्रवतर नहीं हैं, महावेदनतर नहीं हैं, महर्द्धिकतर हैं, महाद्युतिकतर हैं वैसे अल्पर्द्धिकतर नहीं हैं, अल्पद्युतिकतर नहीं हैं। छट्ठी तमा-पृथ्वी के नरक पांचवीं धूमप्रभा-पृथ्वी के नरकों से महत्तर हैं, महा-विस्तीर्णतर हैं, महाअवकाशतर हैं, महाप्रतिरिक्ततर हैं, वैसे महाप्रवेशनतर नहीं हैं, आकीर्णतर नहीं हैं, आकुलतर नहीं हैं, अनवमानतर नहीं हैं-अतिशय-रूप से भरे हुए नहीं हैं। उन नरकों के नैरयिक पांचवीं धूमप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकों से महाकर्मतर हैं, महाक्रियातर हैं, महाआश्रवतर हैं, महावेदनतर हैं, वैसे अल्पकर्मतर नहीं हैं, अल्पक्रियातर नहीं हैं, अल्पआश्रवतर नहीं हैं, अल्पवेदनतर नहीं हैं, अल्पर्द्धिकतर हैं, अल्पद्युतिकतर हैं, वैसे महर्द्धिकतर नहीं हैं, महाद्युतिकतर नहीं हैं। पांचवीं धूमप्रभा-पृथ्वी के तीन लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। इस प्रकार जैसे छठी नरक की
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