Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. २ : सू. २९-३४ भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय-विस्तृत हैं? गौतम! संख्येय-विस्तृत हैं। असंख्येय-विस्तृत नहीं हैं। ३०. भंते! वाणमंतरों के संख्येय लाख आवासों में एक समय में कितने वाणमंतर उपपन्न होते
इस प्रकार जैसे संख्येय-विस्तृत असुरकुमारों के तीन गमक वक्तव्य हैं वैसे ही वाणमंतरों के तीन गमक वक्तव्य हैं। ३१. भंते ! ज्योतिष्क-देवों के कितने लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! असंख्येय लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? इस प्रकार वाणमंतरों की भांति ज्योतिष्क-देवों के तीनों गमक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-केवल एक तेजो-लेश्या होती है। असंज्ञी का उपपात और सत्ता नहीं होती, शेष पूर्ववत्। ३२. भंते ! सौधर्म-कल्प में कितने लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं?
गौतम ! बत्तीस लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। भंते! वे क्या संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय-विस्तृत हैं?
गौतम! संख्येय-विस्तृत भी हैं, असंख्येय-विस्तृत भी हैं। ३३. भंते! सौधर्म-कल्प के बत्तीस लाख विमानावासों में से संख्येय-विस्तृत विमानों में एक समय में कितने सौधर्म-देव उपपन्न होते हैं? कितने तेजो-लेश्या वाले उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार जैसे ज्योतिष्क-देवों के तीन गमक होते हैं, वैसे ही सौधर्म-कल्प के तीन गमक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-तीनों में संख्येय बक्तव्य हैं, अवधि-ज्ञानी, अवधि-दर्शनी च्यवन कर
करते हैं, शेष पूर्ववत्। असंख्येय विस्तृत में भी पूर्ववत् तीन गमक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-तीनों गमकों में असंख्येय की वक्तव्यता। संख्येय अवधि-ज्ञानी, अवधि-दर्शनी च्यवन करते हैं। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार जैसे सौधर्म की वक्तव्यता है, वैसे ही ईशान के छह गमकों की वक्तव्यता। सनत्कुमार की वक्तव्यता पूर्ववत्, इतना विशेष है-स्त्रीवेदक उपपन्न नहीं होते और उनकी सत्ता भी नहीं हैं। असंज्ञी में तीनों गमक वक्तव्य नहीं हैं, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् सहस्रार-कल्प की वक्तव्यता, उनके विमानों और लेश्याओं में नानात्व है,
शेष पूर्ववत्। ३४. भंते! आनत-प्राणत-कल्प में कितने सौ विमानावास प्रज्ञप्त हैं? गौतम! चार सौ विमानावास प्रज्ञप्त हैं। भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय-विस्तृत हैं? गौतम! संख्येय-विस्तृत भी हैं, असंख्येय-विस्तृत भी हैं। इसी प्रकार संख्येय-विस्तृत तीनों गमक सहस्रार-कल्प की भांति वक्तव्य हैं। असंख्येय विस्तृत विमानावासों में संख्येय उपपन्न होते हैं और च्यवन करते हैं, किंतु वहां असंख्येय की सत्ता है, इतना विशेष है-नोइन्द्रिय
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