Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. १ : सू. ४-७ इसी प्रकार वचन-योग वाले भी। जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय काय-योग वाल उद्वर्तन करते हैं। इसी प्रकार साकार-उपयोग वाले, अनाकार-उपयोग वाले की
वक्तव्यता। संख्येय-विस्तृत नरकों में सत्ता-पद ५. भंते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में कितने
नैरयिक प्रज्ञप्त हैं? कितने कापोत-लेश्या वाले यावत् कितने अनाकार-उपयोग वाले प्रज्ञप्त हैं ? कितने अनन्तर-उपपन्नक-प्रथम समय में उपपन्न होने वाले प्रज्ञप्त हैं ? कितने परंपर-उपपन्नक-द्वितीय आदि समय में उपपन्न होने वाले प्रज्ञप्त हैं ? कितने अनंतर अवगाढअवगाहन करने वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने परंपर-अवगाढ प्रज्ञप्त हैं? कितने अनंतर-आहार वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने परंपर-आहार वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने अनंतर-पर्याप्तक प्रज्ञप्त हैं? कितने परंपर-पर्याप्तक प्रज्ञप्त हैं? कितने चरम-भव वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने अचरम-भव वाले प्रज्ञप्त
गौतम! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में संख्येय नैरयिक प्रज्ञप्त हैं, संख्येय कापोत-लेश्या वाले प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् संख्येय संज्ञी प्रज्ञप्त हैं। असंज्ञी स्यात् है, स्यात् नहीं है। यदि है तो जघन्यतः एक, दो अथवा तीन उत्कृष्टतः संख्येय प्रज्ञप्त हैं। संख्येय भव-सिद्धिक प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् संख्येय परिग्रह-संज्ञा-उपयुक्त प्रज्ञप्त हैं। स्त्री-वेदक नहीं हैं, पुरुष-वेदक नहीं हैं, संख्येय नपुंसक-वेदक प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार क्रोध-कषाय वाले, मान-कषाय वाले असंज्ञी की भांति प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् लोभ-कषाय वाले। संख्येय श्रोत्रेन्द्रिय-उपयुक्त प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-उपयुक्त प्रज्ञप्त हैं। नोइंद्रिय-उपयुक्त असंज्ञी की भांति प्रज्ञप्त हैं। संख्येय मन-योग वाले प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् अनाकार- उपयोग वाले प्रज्ञप्त हैं। अनंतर-उपपन्नक स्यात् हैं, स्यात् नहीं हैं। यदि हैं तो असंज्ञी की भांति प्रज्ञप्त हैं। संख्येय परंपर-उपपन्नक प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार अनंतर-उपपन्नक की भांति अनंतर-अवगाढक अनंतर-आहार वाले, अनंतर-पर्याप्तक प्रज्ञप्त हैं। परंपर-अवगाढक यावत् अचरम भव वाले परंपर-उपपन्नक
की भांति प्रज्ञप्त हैं। ६. भंते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से असंख्येय-विस्तृत नरकों में एक समय में कितने नैरयिक उपपन्न होते हैं यावत् कितने अनाकार- उपयोग वाले उपपन्न होते
गौतम! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से असंख्येय-विस्तृत नरकों में एक समय में जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः असंख्येय नैरयिक उपपन्न होते हैं। इसी प्रकार संख्येय-विस्तृत नरकों के तीन गमक की भांति असंख्येय-विस्तृत नरकों के तीन गमक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है संख्येय के स्थान पर असंख्येय वक्तव्य है। शेष पूर्ववत् यावत् असंख्येय अचरम भव वाले प्रज्ञप्त हैं, इतना विशेष है-संख्येय-विस्तृत और असंख्येय-विस्तृत नरकों में भी अवधि-ज्ञानी और अवधि-दर्शनी संख्येय उद्वर्तन करते हैं। ७. भंते! शर्कराप्रभा-पृथ्वी के कितन लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं?
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