Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. १० : सू. २२२,२२३ १८. स्यात् आत्मा है, नो-आत्मा हैं और अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा-दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १९. स्यात् आत्मा हैं, नो-आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो- आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २२३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है चतुष्प्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा, नो-आत्मा और अवक्तव्य-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है-पूर्ववत् वही अर्थ प्रत्युच्चारित है? गौतम! १. स्व-पर्याय की अपेक्षा आत्मा है। २. पर-पर्याय की अपेक्षा नो-आत्मा (आत्मा नहीं) है। ३. दोनों की अपेक्षा अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है।
४-७. चतुष्प्रदेशी स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है-इस प्रकार चार भंग होते हैं। ८-११. सद्भाव-पर्याय और तदुभय-पर्याय की अपेक्षा चार भंग। १२-१५. असद्भाव-पर्याय और तदुभय-पर्याय की अपेक्षा चार भंग। १६. चतुष्प्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा है, नो-आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १७. चतुष्प्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसके देश तदुभय पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, इसलिए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा है, नो-आत्मा है और अवक्तव्य हैं-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १८. चतुष्प्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसके देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसका देश तदुभय-पर्यव के रूप में आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा है, नो-आत्मा हैं और अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है।
१९. चतुष्प्रदेशिक स्कंध के देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसका देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा हैं, नो-आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा-दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-चतुष्प्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा है, स्यात् नो-आत्मा है, स्यात् अवक्तव्य है-निक्षेप में वे ही भंग उच्चारणीय हैं यावत् आत्मा और नो
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