Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १२ : उ. १० : सू. २२३-२२६
भगवती सूत्र -आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २२४. भंते! पांच-प्रदेशी स्कंध आत्मा है? पांच-प्रदेशी स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है? गौतम! पांच-प्रदेशी स्कंध१. स्यात् आत्मा है। २. स्यात् नो-आत्मा है। ३. स्यात् अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४-७. स्यात् आत्मा है और नो-आत्मा है। ८-११. स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य है। १२-१५. स्यात् नो-आत्मा है और अवक्तव्य है। १६. स्यात् आत्मा है, नो-आत्मा है और अवक्तव्य है। १७. स्यात् आत्मा है, नो-आत्मा है और अवक्तव्य हैं। १८. स्यात् आत्मा है, नो-आत्मा हैं और अवक्तव्य है। १९. स्यात् आत्मा है, नो-आत्मा हैं और अवक्तव्य हैं। २०. स्यात् आत्मा हैं, नो-आत्मा है और अवक्तव्य है। २१. स्यात् आत्मा हैं, नो-आत्मा है और अवक्तव्य हैं। २२. स्यात् आत्मा हैं, नो-आत्मा हैं और अवक्तव्य है। २२५. भंते! किस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-पांच-प्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है यावत् स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है? गौतम! १. स्व-पर्याय की अपेक्षा आत्मा है। २. पर-पर्याय की अपेक्षा नो-आत्मा है। ३. तदुभय-पर्याय की अपेक्षा अवक्तव्य है। ४. पंच-प्रदेशी स्कंध का एक देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, एक देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है। इस प्रकार द्विक्-संयोग में सर्व-भंग आते हैं। त्रिक-संयोग में एक आठवां भंग नहीं आता। षट्-प्रदेशी स्कंध में सर्व-भंग आते हैं। जैसे- षट्-प्रदेशी स्कंध की वक्तव्यता, इसी प्रकार यावत् अनंत-प्रदेशी स्कंध की वक्तव्यता। २२६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है, यावत् विहरण करने लगे।
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