Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. १० : सू. २०९-२१६ गौतम ! आत्मा नियमतः दर्शन है, दर्शन भी नियमतः आत्मा है। २१०. भंते ! क्या नैरयिकों की आत्मा दर्शन है ? क्या नैरयिकों की आत्मा से भिन्न कोई दर्शन है ? गौतम ! नैरयिकों की आत्मा नियमतः दर्शन है, उनका दर्शन भी नियमतः आत्मा है। इसी प्रकार यावत् वैमानिक-देवों तक, निरन्तर दंडक वक्तव्य है। स्याद्वाद-पद २११. भंते! रत्नप्रभा-पृथ्वी आत्मा है ? रत्नप्रभा-पृथ्वी से भिन्न कोई आत्मा है?
गौतम ! रत्नप्रभा-पृथ्वी स्यात् आत्मा है, स्यात् नो-आत्मा है-आत्मा नहीं है, स्यात् अवक्तव्य-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २१२. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है रत्नप्रभा-पृथ्वी स्यात् आत्मा है, स्यात् नो-आत्मा है, स्यात् अवक्तव्य आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं
गौतम ! स्व-पर्याय की अपेक्षा आत्मा है, पर-पर्याय की अपेक्षा आत्मा नहीं है, स्व-पर्याय
और पर-पर्याय की अपेक्षा अवक्तव्य है रत्नप्रभा-पृथ्वी-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है रत्नप्रभा-पृथ्वी स्यात् आत्मा है, स्यात् नो-आत्मा है, स्यात् अवक्तव्य-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं
२१३. भंते ! शर्करा-प्रभा पृथ्वी आत्मा है ? रत्नप्रभा-पृथ्वी की भांति शर्करा-प्रभा पृथ्वी की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी की वक्तव्यता। २१४. भंते ! सौधर्म-कल्प आत्मा है?-पृच्छा। गौतम ! सौधर्म-कल्प स्यात् आत्मा है, स्यात् नो-आत्मा है, स्यात् अवक्तव्य-आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २१५. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है, यावत् आत्मा और नो- आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है ? गौतम ! स्व-पर्याय की अपेक्षा आत्मा है, पर-पर्याय की अपेक्षा नो-आत्मा है, दोनों की अपेक्षा अवक्तव्य-आत्मा और नो-आत्मा दोनों एक साथ कहना शक्य नहीं है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् आत्मा और नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् अच्युत-कल्प की वक्तव्यता। २१६. भंते ! ग्रैवेयक-विमान आत्मा है? ग्रैवेयक-विमान से भिन्न कोई आत्मा है?
इसी प्रकार रत्न-प्रभा की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार अनुत्तरविमान की भी, इसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा-पृथ्वी की भी वक्तव्यता।
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