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भगवती सूत्र - १८ उ. ४ कृतादि युग्म चतुष्क
बादर कलेवर) तो जीव के परिभोग में आते हैं और शेष २४ जीव के परिभोग में नहीं आते ।
क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चार कषाय हैं । इनके लिए यहां प्रज्ञापना सूत्र के चौदह वें कषाय पद का अतिदेश किया गया है। नैरयिकादि जीवों के आठों कर्म उदय में रहते हैं । उदय में आये हुए कर्मों की निर्जरा अवश्य होती है । नैरयिकादि कषाय के उदय वाले हैं । कषाय का उदय होने पर कर्मों की निर्जरा होती हैं। इसलिए क्रोधादि के द्वारा नरकादि के आठों कर्मों की निर्जरा होती है ।
कृतादि युग्म चतुष्क
३ प्रश्न - कइ णं भंते ! जुम्मा पण्णत्ता ?
३ उत्तर - गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा - १ कडजुम्मे, २ तेओगे, ३ दावरजुम्मे, ४ कलिओगे ।
प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - जाव कलिओगे ? उत्तर - गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं कडजुम्मे । जेणं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपन्घवसिए सेत्तं तेयोए । जेणं रासी चउकएणं अव हारेणं अवहौरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं दावरजुम्मे । जेणं रासी चक्कणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं कलिओगे । से तेणणं गोयमा ! एवं बुचड़ - जाव कलिओगे |
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कठिन शब्दार्थ - जुम्मा-युग्म (राशि), कडजुम्मे - कृतयुग्म तेयोगे-त्रयोज, बाबरजुम्मे - द्वापरयुग्म, कलिओगे- कल्योज, अवहारेणं-निकालते ।
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