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भगवती सूत्र-श. २० उ. ५ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव परमाणु
ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-वर्णादि धर्म की विवक्षा किये बिना एक परमाणु को 'द्रव्य-परमाणु' कहते हैं । क्योंकि यहां केवल द्रव्य की ही विवक्षा की गई है। एक आकाश प्रदेश को क्षेत्रपरमाणु' कहते हैं । एक समय को 'काल-परमाणु' कहते हैं । वर्णादि धर्म की प्रधानता की विवक्षापूर्वक परमाणु को 'भाव-परमाणु' कहते हैं।
द्रव्य-परमाणु शस्त्रादि के द्वारा काटा नहीं जा सकता। इसलिये वह 'अछेदय' कहलाता है । सूई आदि के द्वारा भेदन नहीं किया जा सकता, इसलिये वह 'अभेदय' कहलाता है । अग्नि से जलाया नहीं जा सकता, इसलिये 'अदाह्य' कहलाता है और हस्तादि से पकड़ा नहीं जा सकता, इसलिये वह ‘अग्राह्य' कहलाता है । परमाणु अति सूक्ष्म है, इसलिये उसमें छेदन, भेदन, दहन, ग्रहणादि क्रिया नहीं हो सकती।
परमाणु के सम-संख्या वाले अवयव नहीं होते । इसलिये वह 'अनर्द्ध' कहलाता है । विषम संख्या वाले अवयव नहीं हैं, इसलिये 'अमध्य' कहलाता है। अवयव नहीं है, इसलिये वह 'अप्रदेश' कहलाता है । परमाणु का विभाग नहीं हो सकता, इसलिये वह 'अविभाग' कहलाता है।
॥ बीसवें शतक का पांचवा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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