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भगवती सूत्र-श. २४ उ. ५२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति
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तो, कितने काल की स्थिति वाले पथ्वीकायिक में आते हैं ?
___ ५२ उत्तर-हे गौतम ! यहां भी असुरकुमारों की वक्तव्यता के समान है । विशेषता यह है कि इनमें एकमात्र तेजोलेश्या होती है । तीन ज्ञान अथवा तीन अज्ञान नियम से होते हैं। स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम होती है, इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है । संवेध-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम तथा एक लाख वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है । इसी प्रकार शेष आठ गमक भी है, परन्तु स्थिति और कालादेश जानना चाहिये।
विवेचन-ज्योतिषी देवों में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियम से कहे गये हैं। इसका कारण यह है कि ज्योतिषी देवों में असंज्ञी नहीं आते । जो सम्यग्दृष्टि संज्ञी आते हैं. तो उनके उत्पत्ति के समय ही मत्यादि तीन ज्ञान होते हैं और मिथ्यादृष्टि संज्ञी आते हैं तो उनके मत्यादि तीन अज्ञान होते हैं।
पल्योपम के आठवें भाग की जो जघन्य स्थिति कही गई है, वह तारा-विमानवासो देव और देवी की अपेक्षा समझनी चाहिये और एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम को जो उत्कृष्ट स्थिति कही गई हैं, वह चन्द्र-विमानवासी देवों की अपेक्षा समझनी चाहिये ।
५३ प्रश्न-जइ वेमाणियदेवेहितो उववनंति किं कप्पोवगवेमा. णिय०, कप्पाईयवेमाणिय ?
५३ उत्तर-गोयमा ! कप्पोवगवेमाणिय०, णो कप्पाईयवेमाणिय०।
भावार्थ-५३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) वैमानिक देवों से आते हैं, तो कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आते हैं, या कल्पातीत से ?
५३ उत्तर-हे गौतम ! वे कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आते हैं, कल्पातीत से नहीं।
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