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भगवती मूत्र - दा. २४ उ. २३ ज्योतिपी देवों का उपपात
१२ प्रश्न - यदि वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य से आ कर उत्पन्न होता हूँ, तो ?
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१२ उत्तर-असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य के समान नौ गमक जानना चाहिये, किंतु ज्योतिषी को स्थिति और संवेध भिन्न है, शेष पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - पल्योपम के दो आठवें भाग जो कहा है, उसमें से एक तो असंख्यात वर्षायु सम्बन्धी और दूसरा तारा ज्योतिषी सम्बन्धी है और उत्कृष्ट जो एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम कहे हैं, उनमें से तीन पल्योपम तो असंख्यात वर्ष की आयु सम्बन्धी हैं और सातिरेक एक पल्योपमं चन्द्र विमानवासी ज्योतिषी सम्बन्धी है। तीसरे गमक में स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष अधिक पत्योपम की कही है, सो यद्यपि असंख्यात वर्ष की आयु वालों की जघन्य स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि होती है, तथापि यहां एक लाख वर्ष अधिक - पत्योपम कहा है, इसका कारण यह है कि वह इतनी ही स्थिति वाले ज्योतिषौ में उत्पन्न होने वाला है, क्योंकि असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीव, अपनी आयु से अधिक आयु वाले देव में उत्पन्न नहीं होते हैं। यह पहले बताया जा चुका है। चौथे गमक में जघन्य काल की स्थिति वाले की उत्पत्ति औधिक ज्योतिषी में बताई है, सो असंख्यात वर्ष की आयु वाला तो पल्योपम के आठवें भाग से कम जघन्य आयु वाला हो सकता है, किन्तु ज्योतिषी में इससे कम आयु नहीं है । असंख्येय वर्षायुष्क अपनी आयु के तुल्य उत्कृष्ट देवायु बन्धक होते हैं । इसलिये जघन्य स्थिति वाले वे पल्योपम के आठवें भाग आयु वाले होते हैं । प्रथम कुलकर विमलवाहन के पूर्व काल में होने वाले हस्ती आदि की यह स्थिति थी । इसी प्रकार के औधिक ज्योतिषी भी उस उत्पत्ति स्थान को प्राप्त होते हैं । यहाँ जो जघन्य अवगाहना धनुष-पृथक्त्व कही है, वह विमलवाहन कुलकर से पहले होने वाले पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले हस्त्यादि से भिन्न क्षुद्रकाय चतुष्पदों की अपेक्षा समझनी चाहिये और उत्कृष्ट अवगाहना सातिरेक अठारह सौ धनुष की कही है, वह विमलवाहन कुलकर से पूर्व होने वाले हस्त्यादि की अपेक्षा समझनी चाहिये। क्योंकि विमलवाहन कुलकर की अवगाहना नो सो धनुष थी और उस समय में होने वाले हस्ती आदि की अवगाहना
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