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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक देवों का उपपात
३ प्रश्न-ते णं भंते !
३ उत्तर-अवसेसं जहा जोइसिएसु उववजमाणस्स । णवरं सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, णो सम्मामिच्छादिट्टी । णाणी वि, अण्णाणी वि, दो णाणा दो. अण्णाणा णियमं । ठिई जहणेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओमाई । एवं अणुबंधो वि, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं छप्पलिओ. वमाइं-एवइयं० १। ___ भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते है ?
३ उत्तर-ज्योतिषी में उत्पन्न होने वाले असंख्यात वर्ष की आय वाले संज्ञी तिर्यंचों के समान । वे समदृष्टि और मिथ्यादृष्टि भी होते हैं, परन्तु सम्यमिथ्यादृष्टि नहीं होते । ज्ञानी और अज्ञानी भी होते हैं। उनमें दो ज्ञान या दो अज्ञान नियम से होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट छह पल्योपम १।।
४-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं-एवइयं० २।
___ भावार्थ-४-यदि वह असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञो पंचेन्द्रिय तिर्यच, जघन्य काल को स्थिति वाले सौधर्म देव में उत्पन्न हो, तो उसके लिये यही वक्तव्यता है। कालादेश से जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक यावत् गमनागमन करता है २। ,
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