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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २८ वैमानिक देवों का उपपात
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उत्कृष्ट दो पल्योपम, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट दो पल्योपम तक यावत् गमनागमन करता है ४ । ___-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालढिईओ जाओ, आदिल्लगमगसरिसा तिण्णि गमगा णेयव्वा । णवरं ठिई कालादेसं च जाणेजा ९ ।
भावार्थ-७ यदि वह स्वयं उत्कट स्थिति वाला हो, तो उसके अन्तिम तीन गमक का कथन प्रथम के तीन गमक के समान जानना चाहिये, विशेष में स्थिति और कालादेश जानना चाहिये ७-८-९ ।
८ प्रश्न-जइ संखेजवासाउयसण्णिपंचिंदिय० ?
८ उत्तर-संखेजवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव णव वि गमा । णवरं ठिइं संवेहं च जाणेजा। जाहे य अप्पणा जहण्णकालढिईओ भवइ ताहे तिसु वि गमएसु सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि णो समामिच्छादिट्ठी । दो णाणा दो अण्णाणा णियमं, सेसं तं चेव ।
भावार्थ-८ प्रश्न-यदि वह सौधर्म देव, संख्यात वर्ष की आयु वाले संजी पंचेंद्रिय तिर्यंच से आ कर उत्पन्न हो, तो ?
८ उत्तर-असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले तिथंच के समान नौ गमक जानने चाहिये, किन्तु यहां स्थिति और संवेध जानना चाहिये । जब वह स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो, तो तीनों गमक में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होता है, सम्यमिथ्यादृष्टि नहीं होता । दो. ज्ञान या दो अज्ञान नियम से होते हैं । शेष पूर्ववत् ।
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