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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक देवों का उपपात
लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति वाले तियंच के तीनों गमक में छहों लेश्याएं होती है। ब्रह्मलोक और लान्तक में जाने वाले में प्रथम के पांच संहनन होते हैं । महाशुक्र और सहस्रार में जाने वाले में प्रथम के चार संहनन होते हैं । तियंच और मनुष्य दोनों के लिए भी यही जानना चाहिये, शेष पूर्ववत् १ से ९ ।
१९ प्रश्न-आणयदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववजंति ?
१९ उत्तर-उववाओ जहा सहस्सारदेवाणं । णवरं तिरिक्खजोणिया खोडेयव्वा जाव
कठिन शब्दार्थ-खोडेयन्वा-निषेध करना चाहिये। भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! आणत देव कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! उपपात सहस्रार देव के समान । परन्तु यहां तियंच का निषेध करना चाहिये (यहां तिर्यच उत्पन्न नहीं होते) । यावत्
२० प्रश्न-पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे, भविए आणयदेवेसु उववजित्तए ?
२० उत्तर-मणुस्साण य वत्तव्धया जहेव सहस्सारेसु उववजमाणाणं । णवरं तिण्णि संघयणाणि, सेसं तहेव जाव अणुबंधो । भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठारस सागशेवमाइं दोहिं वासपहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं सत्ताधण्णं सागरोवमाई चाहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई-एवइयं० । एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा। णवरं ठिइं
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