Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 560
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक देवों का उपणात ३१८९ संवेहं च जाणेजा, सेसं तं चेव ९ । एवं जाव अच्चुयदेवा, णवरं ठिई संवेहं च जाणेजा ९ । चउसु वि संघयणा तिणि आणयादीसु। भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! संख्यात वर्ष की आय वाला पर्याप्त संज्ञी मनुष्य आनत देव में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? २० उत्तर-हे गौतम ! सहस्रार देव में उत्पन्न होने वाले मनुष्य के समान । विशेष में--यहां प्रथम के तीन संहनन वाले उत्पन्न होते है, शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध पर्यन्त । भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव तथा कालादेश से जघन्य दो वर्ष-पृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक भी जानने चाहिये । विशेष में स्थिति और संवेध जानना चाहिये, शेष पूर्ववत् १ से ९ । इसी प्रकार यावत अच्युत देव पर्यन्त । स्थिति और संवेध अपना-अपना । आणतादि चारों देवलोकों में प्रथम के तीन संहनन वाले उत्पन्न होते हैं। २१ प्रश्न-गेविज्जगदेवा गं भंते ! कओहिंतो उववजंति ? २१ उत्तर-एस चेव वत्तव्वया । णवरं दो संघयणा । ठिई संवेहं च जाणेजा। भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! ग्रेवेयक देव कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं ? ____२१ उत्तर-पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । विशेष में यहां प्रयम के दो संहनन वाले उत्पन्न होते हैं तथा स्थिति और संघेध इनका अपना है । २२ प्रश्न-विजत-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवा णं भंते ! कआ. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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