________________
३१८४
भगवती मूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक रेवों का उपपात
पल्योपम कही है, वहां सातिरेक पल्योपम जानना चाहिये । चौथे गमक में अवगाहना जघन्य धनुष पृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक दो गाऊ होती है । शेष पूर्ववत् । __ १३-असंखेजवासाउयसण्णिमणुस्स वि तहेव टिई जहा पंचिं. दियतिरिक्खजोणियस्स असंखेजवासाउयस्स । ओगाहणा वि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेसु इहं साइरेगं गाउयं, सेसं तहेव ९ । ..
भावार्थ-१३-असंख्य वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य की स्थिति, असंख्य वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच के समान । जघन्य अवगाहना सातिरेक गाऊ जाननी चाहिये । शेष पूर्ववत् ।
१४-संखेन्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साण य जहेव सोहम्मेसु उववजमाणाणं तहेव गिरवसेसं णव वि गमगा । णवरं ईसाणठिइं संवेहं च जाणेजा १ ।
भावार्थ-१४-सौधर्म देव में उत्पन्न होने वाले संख्याल वर्ष की आय वाले तिर्यंच और मनुष्य के विषय में जो नौ गमक कहे हैं, वे ही ईशान देव के विषय में भी हैं, स्थिति और संवेध ईशान देव का जानना चाहिये।
विवेचन-सौधर्म देवलोक में जघन्य स्थिति पल्योपम से कम की नहीं होती, इसलिये वहाँ उत्पन्न होने वाला जीव, जघन्य पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता है तथा उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता है, यद्यपि सौधर्म देवलोक में इसमे भी बहुत अधिक स्थिति है, तथापि युगलिक तिर्यच उत्कृष्ट तीन पल्योपम की आयु वाले ही होते हैं । अतः वे इससे अधिक देवायु का बन्ध नहीं करते । दो पल्योपम का जो कथन किया है, उनमें से एक पल्योपम तिर्यंच-भव सम्बन्धी और एक पल्योपम देव-भव सम्बन्धी समझना चाहिये तथा उत्कृष्ट छह पल्योपम का जो कथन है उसमें तीन पल्योपम तिर्यंचभव के और तीन पल्योपम देव-भव के समझना चाहिये ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org