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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति
प्रथम गमक के समान । अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन, शेष पूर्ववत्, यावत् भवादेश पर्यन्त । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम काल तक यावत् गमनागमन करता है १।।
२७-सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुषकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ २ ।
____ भावार्थ-२७-यदि वही जीव जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि २ ।
२८-सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओ. वमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्टिईएसु उववजा-एस चेव वत्तव्बया । णवरं परिमाणं जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववज्जति । ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, सेसं तं चेव जाव 'अणुवंधो' त्ति । भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलि. ओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई ३।
__ भावार्थ-२८-यदि वही जीव उत्कृष्ट काल को स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यच में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले
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