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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियंचों की उत्पत्ति
तइयगमे, सेसं तं चेव ९॥
भावार्थ-२२-यदि वह उत्कृष्ट स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यच में आता हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले संजी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होता है, इत्यादि रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय सम्बन्धी नौवें गमक की वक्तव्यता के समान, यावत् कालादेश पर्यन्त । परिमाण तीसरे गमक के अनुसार, शेष पूर्ववत् ९ ।
२३ प्रश्न-जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिपहिंतो उववज्जति कि संखेजवासाउय० असंखेजवासाउय० ?
२३ उत्तर-गोयमा ! संखेज०, णो असंखेजः ।
भावार्थ-२३ प्रश्न-यदि वह संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच जीव, संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच से आ कर पंचेन्द्रिय तियंच में उत्पन्न हो, तो संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले या असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच से उत्पन्न होता है ?
२३ उत्तर-हे गौतम ! वह संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच से आ कर उत्पन्न होता है, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच में से नहीं।
.. २४ प्रश्न-जइ संखेन० जाप किं पजत्तसंखेज०, अपजत्तसंखेज ?
२४ उत्तर-दोसु वि।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो पर्याप्त या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच से आ कर उत्पन्न होते हैं?
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