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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियं चों की उत्पत्ति
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मुहुत्तममहिया, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजहभागं पुव्वकोडिपुहुत्तमभहियं-एवइयं० ७।
भावार्थ-२० यदि वह स्वयं उत्कष्ट स्थिति वाला हो, तो प्रथम गमक के अनुसार । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक यावत् गमनागमन करता है ।
२१-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया जहा सत्तमगमे । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमभहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चाहिं अंतोमुहत्तेहिं अभहियाओ-एवइयं० ८।
___ भावार्थ-१९ यदि वह स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला, जघन्य काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो भी सातवें गमक की वक्तव्यता के समान है। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि ८ ।
२२-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेजहभागं, एवं जहा रयणप्पभाए उववजमाणस्स असण्णिस्स णवमगमए तहेव गिरवसेसं जाव 'कालादेसो' त्ति । णवरं परिमाणं जहा एयस्सेव
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