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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियंत्रों की उत्पत्ति
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भवग्गहणाई णवसु वि गमएसु अट्ट जाव कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तमभहियं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओ. वमाई चउहि पुव्वकोडीहिं चरहिं य वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाईएवइयं० । एवं णवसु वि गमएसु, णवरं ठिई संवेहं च जाणेज्जा ९ । ___ भावार्थ-५२ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषी देव, पंचेंद्रिय तियंच में उत्पन्न हो, तो ?
५२ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक उद्देशक के अनुसार । नौ गमक में आठ भव होते हैं, यावत् कालादेश से जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार पल्योपम और चार लाख वर्ष तक यावत गमनागमन करता है । इसी प्रकार नौ गमक जानना चाहिये । स्थिति और संवेध भिन्न-भिन्न जानना चाहिये १ से ९ ।
५३ प्रश्न-जइ वेमाणियदेवेहितो० किं कप्पोवगवेमाणिय०, कापाईयवेमाणिय ?
५३ उत्तर-गोयमा ! कप्पोक्सवेमाणिय०, णो कप्पाईयवेमाणिय। जइ कप्पोवग० जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो वि उव. वजंति, णो आणय० जाव णो अच्चुयकप्पोवगवेमाणिय० ।
भावार्थ-५३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वह वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है, तो कल्पोपपन्नक या कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है ?
. ५३ उत्तर-हे गौतम ! वह कल्पोपपन्नक वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है, कल्पातीत वैमानिक देव से नहीं । यदि कल्पोपपन्नक वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है, तो यावत् सहस्रार कल्पोपपन्नक वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है, किन्तु आणत यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न नहीं होता।
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