________________
भगवती सूत्र-श. २४ उ. २१ मनुष्य की विविध योनियों से उत्पत्ति
३१५५
वे उत्कृष्ट संख्यात ही होते हैं । यद्यपि यहाँ सामान्य रूप से मनुष्य का ग्रहण होने से सम्मूच्छिम मनुष्यों का भी ग्रहण हो जाता है और वे असंख्यात हैं, तथापि उत्कृष्ट स्थिति के पूर्चकोटि वर्ष की आयु वाले मनुष्य संख्यात ही होते हैं, जब कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच तो असंख्यात हो जाते हैं । यही समाधान छठे और नौवें गमक के लिये भी समझना चाहिये।
___ मध्य के त्रिक के प्रथम (अर्थात् चौथे) गमक में जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक का मनुष्य में औधिक उत्पाद होता है । उस समय उस पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य में उत्पत्ति होती है, तब उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं और जब उसी गमक में जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में उत्पत्ति होती है, तब अध्यवसाय अप्रशस्त हाते हैं, अतः चौथे गमक में दोनों प्रकार के अध्यवसाय होते हैं। मध्य के त्रिक के दूसरे (अर्थात् पाँचवें) गमक में जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में उत्पन्न होता है, तब उसके अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं, क्योंकि प्रशस्त अध्यवसायों से जघन्य स्थिति में उत्पत्ति नही होती । मध्य के त्रिक के तीसरे (छठे) गमक में जब जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक, उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य में उत्पन्न होता है तब अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं।
७ प्रश्न-जड़ देवेहितो उबवज्जति किं भवणवासिदेवेहितो उववज्जति, वाणमंतर०, जोइसिय०, वेमाणियदेवेहितो उववजंति ? ____७ उत्तर-गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि० जाव वेमाणियदेवे. हिंतो वि उववज्जति ।
भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे मनुष्य, देव से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी या वैमानिक से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
७ उत्तर-हे गौतम ! वे भवनपति यावत् वैमानिक देव से भी आ कर उत्पन्न होते हैं।
८ प्रश्न-जइ भवणवासि० किं असुर० जाव थणिय० ? ८ उत्तर-गोयमा ! असुरकुमार० जाव थणिय०। . :
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org