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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २१ मनुप्य की विविध योनियों से उत्पत्ति.
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की स्थिति वाले मनष्य में उत्पन्न होता है, शेष आणत देववत् । परन्तु उस देव के केवल भवधारणीय शरीर होता है और उसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भांग और उत्कृष्ट दो रत्नि होती है । एक भवधारणीय शरीर, समचतुरस्र संस्थान और पांच समुदंघात होती हैं, यथा-वेदना समुद्घात यावत् तेजस् समुद्घात । परन्तु उन्होंने वैक्रिय समुद्घात और तेजस् समुद्घात कभी की नहीं, करते भी नहीं और करेंगें भी नहीं । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य बाईस सागरोपम उत्कृष्ट इकत्तीत सागरोपम, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य वर्ष-पृथक्त्व अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक तिरानवें सागरोपम । शेष आठों ही गमक में इसी प्रकार । स्थिति और संवेध भिन्न जानना चाहिये।
१५ प्रश्न-जइ अणुत्तरोववाइयकप्पाईयवेमाणिय० किं विजय अणुत्तरोववाइय०, वेजयंतअणुत्तरोववाइय० जाव सव्वट्ठसिद्ध० ?
१५ उत्तर-गोयमा ! विजयअणुत्तरोववाइय० जाव सव्वट्ठसिद्धअणुचरोववाइय० ।
..भावार्थ-१५ प्रश्न-यदि मनुष्य, अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो क्या विजय, वैजयन्त यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
___ १५ उत्तर-हे गौतम ! वे विजय यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होते हैं।
१६ प्रश्न-विजय चेजयंत-जयंत-अपराजियदेवे गं भंते ! जे. भविए मणुस्सेसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइ० ?
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