Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 534
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २१ मनुष्य की विविध योनियों से उत्पत्ति ३१६३ १७ प्रश्न-सव्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उव. वजित्तए ? १७ उत्तर-सा चेव विजयादिदेववत्तव्वया भाणियव्वा । णवरं ढिई अनहण्णमणुकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई एवं अणुबंधो वि, सेसं तं चेव । भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमभहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीए अन्भहियाई-एवइयं० १ । भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव, मनुष्य में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले मनुष्य में उत्पन्न होता है ? १७ उत्तर-हे गौतम ! विजयादि देववत् । स्थिति अजघन्यानत्कृष्ट तेतीस सागरोपम । अनुबन्ध भी इसी प्रकार। भवादेश से दो भव तथा काला देश से जघन्य वर्ष-पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम १। १८-सो चेव जहण्णकालदिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं वास हुत्तमभहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमभहियाई-एवइयं २ । भावार्थ-१८ यदि वह सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव जघन्य काल की स्थिति वाले मनुष्य में उत्पन्न होता है, तो उसके विषय में भी यही दक्तव्यता कहनी चाहिये । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट वर्ष पृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है २ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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