Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 538
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २२ वाणव्यंतर देवों का उपपात ३१६७ भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! असंख्यात वर्ष की स्थिति वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच, वाणव्यन्तर में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? २ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न होता है। शेष नागकुमार उद्देशक के अनुसार, यावत् कालादेश से जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक यावत् गमनागमन करता है १।। ३-सो चेव जहण्णकालटिईएसु उववण्णो जहेव णागकुमाराणं बिइयगमे वत्तव्वया २। भावार्थ-३-यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न होता है, तो नागकुमार के दूसरे गमक में कही हुई वक्तव्यता जाननी चाहिये २। ४-सो चेव उक्कोसकालटिईएसु उववण्णो जहण्णेणं पलिओवमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमट्टिईएसु एस चेव वत्तव्वया । णवरं ठिई से जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओ. वमाइं । संवेहो जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओ. वमाइं-एवइयं० ३ । मज्झिमगमगा तिण्णि वि जहेव णागकुमारेसु पच्छिमेसु तिसु गमएसु तं चेव जहा णागकुमारुहेसए । णवरं ठिई संवेहं च जाणेजा । संखेजावासाउय० तहेव, णवरं ठिई अणुवंधो संवेहं च उभओ ठिईए जाणेजा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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