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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २२ वाणव्यंतर देवों का उपपात
भावार्थ-४ यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरं में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । स्थिति जघन्य पल्योफ्म और उत्कृष्ट तीन पल्योपम को जाननी चाहिये । संवेध-जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम ३ । मध्य के तीन गमक और अन्तिम तीन गमक नागकुमार उद्देशक के अनुसार । स्थिति और संवेध उससे भिन्न जानना चाहिये। संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच के विषय में भी उसी प्रकार जानना चाहिये, किंतु स्थिति और अनुबन्ध भिन्न है। संवेध, दोनों की स्थिति को मिला कर जानना चाहिये।
५-जइ मणुस्स० असंखेजवासाउयाणं जहेच णागकुमाराणं उद्देसे तहेव वत्तव्वया । णवरं तइयगमए ठिई जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई, सेसं तहेव । संवेहो से जहा एत्थ चेव उद्देसए असंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियाणं । संखेजवासाउयसण्णिमणुस्से जहेब णागकुमारुद्देसए । णवरं वाणमंतरे ठिई संवेहं च जाणेजा।
8 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति ® ॥ चउवीसइमे सए बावीसइमो उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ-५ यदि वे वाणव्यन्तर देव, मनुष्य से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो नागकुमार उद्देशक के असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य के समान । तीसरे गमक में स्थिति जघन्य पल्योफ्म और उत्कृष्ट तीन पल्योपम । अवगाहना
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