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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २१ मनुष्य की विविध योनियों से उत्पत्ति
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प्रथम ग्रैवेयक में जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम की होती है और उत्कृष्ट तेईम सागरोपम की । आगे क्रमश: प्रत्येक ग्रेवेयक में एक-एक सागरोपम की वृद्धि होती जाती है । नौवें ग्रेवेयक में उत्कृष्ट स्थिति ३१ सागरोपम है । वहाँ भवादेश से उत्कृष्ट छह भव होते हैं । इसलिये तीन मनुष्य भव की उत्कृष्ट स्थिति तीन पूर्वकोटि और तीन ग्रेवेयक भव की उत्कृष्ट स्थिति तिरानवें सागरोपम होता है । यह कालादेश से उत्कृष्ट संवेध है।
___ सर्वार्थसिद्ध देव के अधिकार में प्रथम के तीन गमक होते हैं, क्योंकि उनकी स्थिति अजघन्यानुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है । जघन्य स्थिति न होने से चौथा, पाँचवाँ और छठा-ये तीन गमक नहीं बनते और उत्कृष्ट स्थिति न होने से सातवाँ, आठवाँ और नौवाँ-ये तीन अन्तिम गमक नहीं बनते । ___अनुत्तरौपपातिक देव में मिथ्यादृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि को वजित किया है और एक सम्यग्दृष्टि ही बतलाई गई है, परन्तु नवग्रैवेयक के वर्णन में कोई भी दृष्टि वर्जित नहीं की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नवग्रैवेयक में तीनों दृष्टियाँ पाई जाती हैं।
॥ चौबीसवें शतक का इक्कीसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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