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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
वाला मनुष्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न नहीं होता।
संज्ञी मनुष्य के मध्य के तीन गमक के परिमाण में उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । क्योंकि संज्ञी मनुष्य संख्यात ही हैं, इसलिये वे उत्कृष्ट रूप से भी संख्यात ही उत्पन्न होते हैं।
४५ प्रश्न-जइ देवेहितो उववज्जति किं भवणवासिदेवेहितो उववज्जति, वाणमंतर०, जोइसिय०, वेमाणियदेवेहितो० ?
४५ उत्तर-गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि० जाव वेमाणिय. देवेहितो वि०।
भावार्थ-४५ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वह पञ्चेन्द्रिय तिर्यच, देव से आ कर उत्पन्न होता है, तो भवनपति देव से, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, या वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है ?
___ ४५ उत्तर-हे गौतम ! वह भवनपति देव यावत् वैमानिक देव से आ कर उत्पन्न होता है।
.४६ प्रश्न-जइ भवणवासि० किं असुरकुमारभवण० जाव थणियकुमारभवण० ?
४६ उत्तर-गोयमा ! असुरकुमार० जाव थणियकुमारभवण । ___ भावार्थ-४६ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वह भवनपति देव से आ कर उत्पन्न होता है, तो असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनपति देव से आ कर उत्पन्न होता है ?
___ ४६ उत्तर-हे गौतम ! वह असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनपति देव से आ कर उत्पन्न होता है।
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