________________
३१४२
भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
मज्झिमेसु तिसु गमएसु वत्तव्वया भाणिया एस चेव एयस्स वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु णिरवसेसा भाणियव्वा । णवरं परिमाणं उक्को. सेणं संखेजा उववजंति, सेसं तं चेव ६।।
भावार्थ-४१ यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो, तो पंचेंद्रिय तियंच में उत्पन्न होने वाले पंचेंद्रिय तियंच के मध्य के तीन गमक के अनुसार। परिमाण में उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, शेष पूर्ववत् ४, ५, ६ ।
४२-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ सच्चेव पढमगमगवत्तव्वया । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुसयाई । उकोसेण वि पंच.धणुसयाइं । ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुबकोडी, सेसं तहेव जाव भवादेसो त्ति, कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तमभहिया, उकोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडिपुडुत्तमब्भहियाई-एवइयं ७ ।
भावार्थ-४२ यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो, तो इसके प्रथम गमक की वक्तव्यता जाननी चाहिये, किन्तु अवगाहना नवन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष होती है । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि, शेष भवादेश पर्यंत उसी प्रकार । कालादेश से जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम । .
४३-सो चेव जहण्णकालटिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी अंतोमुत्तमम्भहिया, उक्को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org