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भगवती सूत्र - २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियंचों को उत्पत्ति
भावार्थ - ३९ - यदि वह संज्ञी मनुष्य जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष २ ।
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४० - सो चैव उक्कोसका लट्ठिएस उबवण्णो जहण्णेणं तिपलिओवमट्टिईएस, उक्कोसेण वि तिपलिओचमट्टिईएसु - सच्चेव वत्तव्वया । वरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई । ठिई जहण्णेणं मासपुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी | एवं अणुबंधो वि । भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं तिष्णि पलिओ माई मासपुहुत्तमम्भहियाई, उक्को सेणं तिष्णि पलिओ - माई पुव्वकोडीए अन्भहियाई - एवइयं ० ३ ।
भावार्थ - ४० - यदि वही मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तियंच में उत्पन्न होता है। यहाँ भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । अवगाना जघन्य अंगुल - पृथक्त्व और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष । स्थिति जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । इस प्रकार अनुबन्ध भी जानना चाहिए । भवादेश से दो भव तथा कालादेश - जघन्य मास-पृथक्त्व अधिक तीन पत्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम ३ ।
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४१ - सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ, जहा सण - पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणस्स
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