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भगवती सूत्र - श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति
३३ प्रश्न - जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं सष्णिमणु०, असष्णिमणु० ?
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३३ उत्तर - गोयमा ! सष्णिमणुस्सेहिंतो वि, अरुणिमणुस्सेहिंतो वि उबवज्जति ।
भावार्थ - ३३ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्यों से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो क्या संज्ञी मनुष्य से या असंज्ञी मनुष्य से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
३३ उत्तर - हे गौतम ! वे संज्ञी और असंज्ञी दोनों प्रकार के मनुष्य से आकर उत्पन्न होते हैं ।
३४ प्रश्न - असणिमणुस्से णं भंते! जे भविए पंचिदियतिरिखखजोणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयकाल० ?
३४ उत्तर - गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त०, उक्कोसेणं पुव्बकोडिआरएस उवक्जइ । लद्धी से तिसु वि गमएसु जहेव पुढवि काइएसु उववज्जमाणस्स । संवेहो जहा एत्थ चेव असणिपंचिंदियस्स मज्झिमे तिसुगमसु तव णिरवसेसो भाणियव्वो ।
भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ?
३४ उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होता है । पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्य के प्रथम तीन गमक के अनुसार यहां भी प्रथम के तीन गमक जानना चाहिये। संवेध, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच के मध्य
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