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भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेंद्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति
उकोसेणं तिष्णि पलिओ माई पुव्वकोडी पुहुत्तमव्भहियाई ७ ।
भावार्थ - ३० यदि वह स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो, तो प्रथम गमक के समान । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम ७ ।
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३१ - सो चेव जहण्णकालट्टिईएस उववण्णो एस चैव वत्तव्वया । वरं कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी अंत्तोमुहुत्तमन्भहिया, उको सेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ ८ ।
भावार्थ - ३१ यदि वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, जघन्य स्थिति वाले पंचेंद्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । कालादेश से जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अंतर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि ८ ।
३२- सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओवमट्टिईएस, उक्कोसेण वि तिपलि ओवमट्टिईएस, अघसेसं तं चेव । णवरं परिमाणं ओगाहणा य जहा एयस्सेव तयगमए । भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं तिष्णि पलिओ माई पुव्वकोडीए अमहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओ माई पुव्वकोडीए अमहिया - एवइयं ९ ।
भावार्थ - ३२ यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पंचेंन्द्रिय तियंच में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पत्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता
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