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भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेन्द्रिय तिर्थचों की उत्पत्ति
संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । परिमाण जघन्य एक, दो और तीन, उत्कृष्ट संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं । अवगाना जघन्य अंगुल के असख्यातवें भाग, उत्कृष्ट एक हजार योजन, शेष पूर्ववत्, यावत् अनुबन्ध पर्यन्त भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक तीन पत्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तीन पत्योपम ३ |
२९ - सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्टिईओ जाओ, जहणेणं अतोमुहुत्त०, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउएस उववज्जइ । लदी से जहा एयरस चेव सणि चिंदियस्स पुढविकाइएस उववज्जमा णस्स मज्झिल्लएसु तिसुगमएस सच्चेव इह वि मज्झिमेसु तिसुगमपसु कायव्वा । संवेहो जहेव एत्थ चेव असण्णिस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु ६ ।
• भावार्थ - २९ - यदि वह संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच स्वयं जघन्य स्थिति वाला हौ (और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो ) तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होता है। इस विषय में पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले इसी संज्ञी पञ्चेन्द्रिय को वक्तव्यता के अनुसार यहाँ मध्य के तीन (चौथा, पाँचवाँ छठा) गमक जानना चाहिये और पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बीच के तीन गमक में जो संवेध कहा है, उसी प्रकार यहां भी जानना चाहिये ६ ।
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३० - सो वेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ जहा पढमगमओ । णवरं ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुव्त्रकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी । कालादेसेणं जहण्णेणं पुबकोडी अंतोमुहुत्तमन्भहिया,
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