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भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पति
अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है ४ ।
१८ - सो चैव जहण्णका लट्टिईएस उववण्णो एस चैव वत्तब्वया । णवरं कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अट्ट अंतोमुहुंत्ता - एवइयं ० ५ ।
भावार्थ - १८ यदि वह असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेंद्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो इसी प्रकार है । कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट आठ अंतर्मुहूर्त तक यावत् गमनागमन करता है ।
१९ - सो चेव उक्कोसका लट्टिईएस उववण्णो जहण्णेणं पुव्वकोडिआरएस, उक्कोसेण वि पुव्वकोडिआरएस उववज्जइ - एस चैव वत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जाणेज्जा ६ ।
भावार्थ - १९ यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेंद्रिय तिचयोनिक में आता हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति में आता है। यहां भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । कालादेश इस से भिन्न जानना चाहिये ६ ।
२० - सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ सच्चेव पढमगमगवत्तत्व्वया । णवरं ठिई जहणेणं पुब्वकोडी उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, सेसं तं चैव । कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी असो
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