SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१३० भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है ४ । १८ - सो चैव जहण्णका लट्टिईएस उववण्णो एस चैव वत्तब्वया । णवरं कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अट्ट अंतोमुहुंत्ता - एवइयं ० ५ । भावार्थ - १८ यदि वह असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेंद्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो इसी प्रकार है । कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट आठ अंतर्मुहूर्त तक यावत् गमनागमन करता है । १९ - सो चेव उक्कोसका लट्टिईएस उववण्णो जहण्णेणं पुव्वकोडिआरएस, उक्कोसेण वि पुव्वकोडिआरएस उववज्जइ - एस चैव वत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जाणेज्जा ६ । भावार्थ - १९ यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेंद्रिय तिचयोनिक में आता हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति में आता है। यहां भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । कालादेश इस से भिन्न जानना चाहिये ६ । २० - सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ सच्चेव पढमगमगवत्तत्व्वया । णवरं ठिई जहणेणं पुब्वकोडी उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, सेसं तं चैव । कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी असो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy