SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१३४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति प्रथम गमक के समान । अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन, शेष पूर्ववत्, यावत् भवादेश पर्यन्त । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम काल तक यावत् गमनागमन करता है १।। २७-सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुषकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ २ । ____ भावार्थ-२७-यदि वही जीव जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि २ । २८-सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओ. वमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्टिईएसु उववजा-एस चेव वत्तव्बया । णवरं परिमाणं जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववज्जति । ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, सेसं तं चेव जाव 'अणुवंधो' त्ति । भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलि. ओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई ३। __ भावार्थ-२८-यदि वही जीव उत्कृष्ट काल को स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यच में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy