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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति २४ उत्तर-हे गौतम ! वे दोनों में से आ कर उत्पन्न होते हैं। २५ प्रश्न-मंखेजवासाउयसष्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइ०? २५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं०, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टिइएसु उववजेजा। भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच जीव, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? . २५ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम को स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यच में उत्पन्न होता है। २६ प्रश्न-ते णं भंते !? २६ उत्तर-अवसेसं जहा एयस्स चेव सण्णिस्स रयणप्पभाए उववंजमाणस्स पढमगमए । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, सेसं तं चेव जाव 'भवा. देसो' ति । कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहुत्तमब्भहियाई-एवइयं० १ । भावार्थ-२६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे संज्ञी पंचेन्द्रिय नियंच एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि ? २६ उत्तर-रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले इस संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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