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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंवेन्द्रिय तिर्यवों की उत्पत्ति
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होते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! वे नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव से भी आ कर उत्पन्न होते हैं।
२ प्रश्न-जइ णेरइएहिंतो उववजति किं रयणप्पभापुढविणेरइएहिंतो उववजंति जाव अहेसत्तमपुढविणेरइएहिंतो उववजति ?
२ उत्तर-गोयमा ! रयणपभापुढविणेरइएहिंतो उववजति जाव अहेसत्तमपुढविणेरइएहितो।
.. भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे नरयिक से आते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक से यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक से आते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक से आते हैं।
३ प्रश्न-रयणप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकालदिईएसु उववजेजा ?
३ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टिईएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उववजेजा।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! रत्नप्रभा पथ्वी के नैरयिक, जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होते है, वह कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि को
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