Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 492
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय लियंचों की उत्पत्ति . ३१२१ अज्ञान नियम से। स्थिति और अनबन्ध पूर्ववत । इस प्रकार नौ गमक उपयोगपूर्वक जानना चाहिये, इसी प्रकार यावत् छठी नरक पृथ्वी तक जानना चाहिये, परन्तु अवगाहना, लेश्या, स्थिति, अनुबन्ध और संवेध यथायोग्य भिन्नभिन्न जानना चाहिये। ८ प्रश्न-असत्तमपुढविणेरइए णं भंते ! जे भविए० ? ८८ उत्तर-एवं चेव णव गमगा। णवरं ओगाहणा-लेस्सा-ठिई. अणुवंधा जाणियव्वा । संवेहो भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, : उकोसेणं छन्भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं अंततेमुहुत्तममहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं तिहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाइं-एवइयं० । आदिल्लएसु छसु वि गमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं छ भवग्गहणाई, पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उकोसेणं चत्तारि भवग्गहणाई । लद्धी णवसु वि गमएसु जहा पढमगमए । णवरं ठिईविसेमो कोलादेसो य विइयगमएसु जहण्णेणं बावीसं सागगेवमाइं अंतोमुहुत्तमन्भहियाई, उकोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई-एवइयं कालं । तइयगमए जहण्णेणं वावीसं मागरोवमाई पुवकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं तिहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई। चउत्थगमे जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं तिहिं पुव्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566