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भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
१० प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख. जोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइ० ?
१० उत्तर-गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तट्टिईएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उपवनंति।
भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, जो पञ्चेन्द्रिय तियंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक में उत्पन्न होता है।
११ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ?
११ उत्तर-एवं परिमाणाइया अणुबंधपज्जवसाणा जच्चेव अप्पणो सट्टाणे वत्तव्वया सच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववजमाणस्स भाणियब्वा । णवरं णवसु वि गमएसु परिमाणे जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उकोसेणं संखेजा वा असंखेना वा उववजंति । भवादेसेण वि णवसु वि गमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, सेसं तं चेव । कालादेसेणं उभओ ठिईए करेजा।
भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! वे पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि ? . ११ उत्तर-परिमाण से ले कर अनुबन्ध तक स्वयं के स्व स्थान की वक्तव्यता के अनुसार जाननी चाहिये । परन्तु नौ गमकों में परिमाण जघन्य
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