________________
३१२६
भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति
एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात आते हैं । संवेध-भवादेश से नौ गमक में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव, शेष पूर्ववत् । कालादेश से दोनों की स्थिति को जोड़ कर संवेध-जानना चाहिये।
१२ प्रश्न-जइ आउकाइएहिंतो उववज्जति० ?
१२ उत्तर-एवं आउकाइयाण वि। एवं जाव चउरिंदिया उव. वाएयब्बा। णवरं सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा । णवसु वि गम. एसु भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उकोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं । कालादेसेणं उभओ ठिई करेजा सव्वेसि सव्वगमएसु । जहेव पुढविकाइएसु उववजमाणाणं लद्धी तहेव सव्वस्थ ठिई संवेहं च जाणेजा।
____ भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वह पञ्चेन्द्रिय तियंच अप्कायिक जीवों से आता है, इत्यादि पूर्ववत् ?
१२ उत्तर-इसी प्रकार यावत् चौरिन्द्रिय पयंत उपपात जानना चाहिये, परंतु वक्तव्यता सर्वत्र अपनी-अपनी कहनी चाहिये । नौ गमकों में भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव, कालादेश से दोनों की स्थिति को जोड़ना चाहिये। पृथ्वीकायिक में आने वाले जीव की वक्तव्यता के अनुसार सभी गमकों में सभी जीवों के विषय में जानना चाहिये और स्थिति और संवेध सर्वत्र भिन्न-भिन्न यथायोग्य जानना चाहिये।
१३ प्रश्न-जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, असण्णिपंचिंदिया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org