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भगवती सूत्र-श. ४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियंचों की उत्पत्ति
कोडीहिं अब्भहियाई। पंचमगमए जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं छावडिं सागरोवमाई तिहिं अंतोमुहुः तेहिं अन्भहियाई । छट्टगमए जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं पुव्व. कोडीहिं अमहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाई तिहिं पुव्व कोडीहिं अभहियाइं। सत्तमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतो. मुहुमत्तम्भहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई । अट्ठमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमन्महियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई। णवमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुष्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं-एवइयं० ९।
भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! अधःसप्तम नरक पृथ्वी का नरयिक, पञ्चेन्द्रिय तियंच में आवे, तो कितने काल की स्थिति में आता है ?
८ उत्तर-हे मौतम ! पूर्ववत् नौ गमक जानने चाहिये, विशेष यह है कि अवगाहना, लेश्या, स्थिति और अनुबन्ध विचार कर कहना चाहिये । संवेधभवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव तथा कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है। प्रथम के छह गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव तथा अन्तिम तीन गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट चार भव जानना चाहिये। नौ गमकों में लब्धि प्रथम गमक के समान । दूसरे गमक में स्थिति की विशेषता है तथा कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहर्त
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