Book Title: Bhagvati Sutra Part 06
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 491
________________ ३१२० भगवती सूत्र-शः २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यों की उत्पत्ति सत्त गमगा भाणियव्वा जहेव णेरड्यउद्देसए मण्णिपंचिंदिएहिं समं । णेरइयाणं मज्झिमएसु य तिसु वि गमएसु पच्छिमएसु तिसु वि गमएसु ठिणाणत्तं भवइ, सेसं तं चेव । सव्वत्थ ठिई संवेहं च जाबा ९। भावार्थ-६-यदि वह रत्नप्रभा नैरयिक, जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यचों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यचों में उत्पन्न होता है, शेष पूर्ववत् । विशेष यह कि कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है २ । इसी प्रकार शेष सात गमक, नैरयिक उद्देशक में संज्ञा पञ्चेन्द्रिय के साथ बतलाये, उसी प्रकार यहां भी जानने चाहिये। मध्य के तीन गमक और अन्तिम तीन गमकों में स्थिति और अनुबंध की विशेषता है, शेष पूर्ववत् । सर्वत्र स्थिति और संवेध उपयोग पूर्वक जानना चाहिये ३-९ । ७ प्रश्न-सकरप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! जे भविए० ? ७ उत्तर-एवं जहा रयणप्पभाए णव गमगा तहेव सकरप्पभाए वि । णवरं सरीरोगाहणा जहा ओगाहणसंठाणे । तिण्णि णाणा तिणि अण्णाणा णियमं । ठिई अणुबंधा पुवभणिया । एवं णव वि गमगा उवजुजिऊण भाणियव्वा, एवं जाव छट्टपुढवी । णवरं ओगा. हणा लेस्सा ठिई अणुबंधो संवेहो य जाणियव्वा ।। भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! शर्कराप्रभा का नरयिक, जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में आता है, इत्यादि ? ७ उत्तर-रत्नप्रभा के नौ गमकवत् । शरीर को अवगाहना प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवें 'अवगाहना संस्थान पद' के अनुसार । तीन ज्ञान और तीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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