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भगवती सूत्र-श. २४ र २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति
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पणता । तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते वि डंडसंठिया पण्णत्ता । एगा काउलेरसा पण्णत्ता । समुग्घाया चत्तारि । णो इस्थिवेयगा, णो पुरिसवेयगा, णपुंसगवेयगा । ठिई जहाणेणं दसवाममहस्साई, उकोसेणं सागशेवमं । एवं अणुबंधो वि, सेमं तहेव । भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं । कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहत्तमहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुवकोडीहिं अब्भहियाइं-एवड्यं० ।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ?
५ उत्तर-हे गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं-१ भवधारणीय शरीर और २ उत्तरवैक्रिय । दोनों प्रकार के शरीर केवल हुण्डक संस्थान वाले होते हैं । लेश्या एक कापोत और समुद्घात चार होती हैं । वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी नहीं होते, मात्र नपुंसकवेदी होते हैं। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम होता है। शेष पूर्ववत् । भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तथा कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करते हैं १ ।
६-सो चेव जहण्णकालटिईएसु उववण्णो, जहण्णेणं अंतो. मुहुत्तट्टिईएसु०, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तट्टिईएसु०, अवसेसं तहेव । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं तहेव, उकोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहत्तेहिं अब्भहियाई-एवइय कालं० २ । एवं सेसा वि
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