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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंवेन्द्रिय तिर्यवों की उत्पत्ति ३११७ होते हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! वे नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव से भी आ कर उत्पन्न होते हैं। २ प्रश्न-जइ णेरइएहिंतो उववजति किं रयणप्पभापुढविणेरइएहिंतो उववजंति जाव अहेसत्तमपुढविणेरइएहिंतो उववजति ? २ उत्तर-गोयमा ! रयणपभापुढविणेरइएहिंतो उववजति जाव अहेसत्तमपुढविणेरइएहितो। .. भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे नरयिक से आते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक से यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक से आते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक से आते हैं। ३ प्रश्न-रयणप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकालदिईएसु उववजेजा ? ३ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टिईएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उववजेजा। भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! रत्नप्रभा पथ्वी के नैरयिक, जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होते है, वह कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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